ca-app-pub-4947244446224398/3427483588
header ads

जीनगर जाति एक कलाकारिय जाति


जीनगर समाज के पूर्वज विभिन्न कलाओं में पारगंत एवं सिद्धहस्त रहें । जीनगर को अ्ंग्रेजी में सेडलर यानी जीनसाज कहा जाता है। उंठ व घोटों की काठी तथा राजा महाराजों के बैठने आदि के आसनों को चमड़े व कपड़ों पर कसीदाकारी एवं नकासी आदी से सजाकर राजा महाराजों के स्तर के अनूरूप तैयार करते थे। जीनगर समाज राजा महाराजाओं के अलावा सेठ साहुकारों के घरों के साज—सज्जा के सामान भी बनाया करते थे।
जीनगर जाति के अनेक गोत्र उनके काम के आधार पर बनाये गये। जीनगर समाज उस समय नौ—न्याति छत्रिय समाज के रूप में जाना जाता था। जीनगर यानी जीनसाज बैठने के आसनों के निर्माणकरने वाले, शिक्लीगर—लोहे के औजार बनाने वाले एवं धार करने वाले, म्यानगर—तरवारों आदि हथियारों के लिए म्यान बनाने वाले, हीरागर— हीरे की घसाई कर उसे चमकाने वाले, पन्नीगर—सोने चांदी तबक और कतीर की पन्नी बनाने वाले। जोड़ीगर— जो जूते बनाते थे। थ्ईगर—जो जोगदानी और रूपये पैसे रखने की थेई यानी थैली या गौथली बनाते थै। नैत्रगर— मर्तियों के नैत्र बनाने वाल एवं मीनागर— मीनाकारी करने वाले ढालगर—ढाल व परतले बनाने वाले। इन सबमें सबसे श्रेष्ठ जीनगर को माना जाता  इसिलिये जीनगर की पहिचान के आधार पर इस समुह को नौ—न्याति जीनगर क्षत्रिय समाज के नाम से जाना जाता। पूर्वज बताते है कि कालान्तर में इनमें आपस में शादिविवाह आदि भी हुआ करते थ।
     आज भी जीनगर समाज के अधिकांश लोग कारीगरी का काम करते है। चाहे वो नये जुते बनाने का काम हो या सोफा सेट का निर्माण । जो लोग नौकरी नहीं करते वे किसी न किसी कारिगरी वाले काम में अपनी सिद्धहस्ता हासिल कर अपना लोहा अन्य समाजों के समक्ष मनावाने में कामयाब रहे। समाज में आज चित्रकाकार, पोशिश मेकर, शू मेकर, हैण्डीक्राफ्ट के आईटम बनाने वाले, संगीतकार, गायककार, वादक व अनेक प्रकार के कलाकार हैं। बस उनको समाजिक मंच नहीं मिला जिसके कारण हमारा असली स्वरूप उजागर नहीं हो पा रहा। जीनगर ज्योति इस कलाकारिय स्वरूप को पुन: न केवल अपने समाज में बल्कि उन्य समाजों के समक्ष जीनगर जाति एक कलाकारिय जाति है कि स्थापना करने के लिए प्रतिबद्ध है। जय जीनगर— जय समाज। 

Post a Comment

0 Comments