जीनगर समाज इतिहास
JAI JEENGAR |
अतः यह स्वमेव सिध्द हो जाता है कि जीनगर जाति के लोग उन्ही सुर्यवन्शी "नगर-स्थान" के राज्य के ज्येष्ठ पुत्र जयसेन के वन्शज है। जयसेन एक बहुत ही नेक दिल, दिलेर, बहादुर व न्याय प्रिय कुशल शासक थे। इनकी यश व कीर्ति सर्वत्र फ़ैल चूकि थी जिससे भारतवर्ष के पडोसी मुल्को - अरबो, आफ़गनो, तुर्को तथा मन्गोलो को लल्चायातथा उन्होने "नगर-स्थान" पर फ़ोजी हमलेकरने शुरु कर दिये। बार बार हमले से अर्थव्यवस्था टूट्ने लगी तथा एक बार मलेच्चो ने नौ मास तक "नगर-स्थान" को घेरे रखा एवम युद्ध चलता रहा। जय नगर के क्षत्रियो ने ड्ट्कर मुक़ाबला किया और अन्त मे लाखो सैनिक वीर-गति को प्राप्त हुए तथा सभी बडे बडे योधा युध मे मारे गये, जिससे इस वन्श के बचेहुए सभी लोगो के पाव उखड गये और वे वहासे जान बचा कर भाग निकले।विस्थापितो की तरह भटकते हुए राजपुताना (राजस्थान) की और प्रस्थान कर गये तथा राजपुताना को अपना सुरक्षित स्थान बनाया एवम राजपुताना के विभिन्न नगरो मे बस गये जिनमे मुख्यतः मारवार (जोधपुर), मेवाड (उदयपुर), आमेर, नागोर, अजमेर, जयपुर, सिरोही एवम जालोर मुख्य है।
यही से जीनगर जाति के लोग देश के विभिन्न शहरो मे जाकर बस गये। राजपुताना मे बसने के बाद सबसे बडी समस्या आजिविका की थी, अतः क्षत्रिय गुण धर्म होने से राजघराने के विभिन्नकार्य जेसे तलवार बनाना, म्यान बनाना, घोडो की जीन बनाना, राजसी कपडो पर छ्पाई आदि कार्य प्रारम्भ कर दिया।
इस प्रकार क्षत्रिय सनरक्षण मे इनका क्षत्रिय धर्म भी नष्ट नही हुआ तथा आजिवीका भी चलती रही, तथा ये लोग राजघरानो के सम्पर्क मे ही रहे और ये जीनगर क्षत्रिय ही कहलाये। इनके विभीन्न कार्य अनुसार इनकी नौ न्याति कहलायी जो निम्नानुसार है:
(अ) ज़ीनगर (ब) पनीगर (स) सिफलीगर (द) म्यानगर (ए) धइग़र (फ़) छिपलीगर (ग) नेत्रगर (ह) ढालगर (इ) चित्रकार |
समाज मे पन्च पन्चायात तथा अन्य अवसरोपर सभी नौ न्यात को बुलाया जाता था तथा आपस मे शादी ब्याह व सम्बन्ध होतेथे।
ज़ीनगर जाति क्षत्रिय कुल (वन्श) से ही है, इसका उल्लेख एक प्राचीन ग्रन्थ जो सम्व्त 1860-1900 विक्रम मे जोधपुरनरेश श्रिमान महाराजा मानसिन्हजी के समय मे राजकवि कविराज श्री बाकीदासजी चारण का लीखा हुआ "एतिहासिक बाते" से होत है। इस ग्रन्थ की हस्त लिखित प्रति जोधपुर राज्य के मह्कमे मे सुरक्षित है। उक्त ग्रन्थ मे प्रष्ट सन्ख्या 2466 मे लीखा है कि "ज़ीनगर जाति की खास उत्पति क्षत्रिय कुल से ही है। परन्तु ये लोग भागवान परशुरामजी के डर से दूसरी जाति मे गिनाने लगे, फिर जुता बनाने से जीनगर कहलाये। इनके गोत्त्रा तथा प्राचिन क्षत्रियो के गोत्र एक ही है। इतना हीनही, मारवाड राज्य के जोधपुर मे करीब शताब्दि पूर्व बने मकानो के सरकारी पट्टो मे जीनगर राजपुत नाम मिलता है। इससे ये सिध्ध होता है कि जीनगर जाति क्षत्रिय कुल से ही है|जैसा कि उपर वर्नित है जीनगर जाति के लोग शिल्पकारी व कारिगरी वाणिज्य का कार्य करके ही अपना जीवन यापन कारते थे जो कि राजा महाराजाओ के आश्रित कामपर ही निर्भर था। मगर अन्ग्रेजो के भारत मे आ जाने से उनके शासन काल मे छोटे छोटे द्वन्द युद्ध बन्द हो चले थे !
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